लो आज फिर एक बार बादलों ने आसमान को घेरा है ,
धूप कहीं दूर, सूरज को फिर अँधेरे ने आ घेरा है ।
टपटप करती बूँदों खो गया फिर सवेरा है ॥
,रास्तों की भीड़ बसेरों में सिमट गयी है,दिन में ही छाया घना अँधेरा है ।
आँधियों के जोर से टहनियों ने दामन दरख्त का छोड़ा है,
लो आज एक बार फिर आसमान को बादलों ने आ घेरा है ॥
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