चुनाव
लो फिर एक बार हो गया आगाज चुनावों का,
और उतर पड़े मैदान में नेता उम्मीद और आशा के साथ ,
कोई मांग रहा है कमल का साथ और,
कोई मांग रहा है आपसे उठाकर अपने हाथ 'हाथ'का साथ ।
मतदाता हमेशा ही खड़ा रह जाता है ठगा सा,
फिर भी दे देता है हमेशा किसी न किसी को अपना साथ ,
गलियों में ,सड़कों पर उतर कर
एक दूसरे के ऊपर उछालते कीचड़ बताते अपने दामन को साफ़ ।
गरीबों की दुनिया में तो जैसे आ जाती है,
इन दिनों बहार और बच्चे भी मानाने लगते हैं जैसे त्यौहार,
जिन्होंने न देखी थीं गन्दी गलियों को ,
वो उन तंग गलियों नज़र आ रहे घूमते अपने बॉडीगार्ड के साथ ।
संहलना उमीदवारों अब हो गया हर कोई,
चतुर और समझदार,मांगना सम्हल कर मतदाता का साथ ,
पर मैं तो इस बार हूँ बहुत ही ज्यादा खुश
,क्यूंकि मैं तो 'नोटा' पर रखूंगी अपने अतिसुन्दर कोमल हाथ ॥
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