Monday, August 24, 2015

फिर याद आ रहा है

न जाने क्यों वो बचपन आज इस कदर याद आ रहा है,
मोहल्ले में बच्चों संग हुल्लड़ मचाना याद आ रहा है,
बादलों में बनते बिगड़ते चेहरे ढूंढना फिर याद आ रहा है,
बारिशों में भीग कर स्कूल से लौटना फिर याद आ रहा है,
 गिट्टी से खेलना  और मिटटी में सन जाना  याद आ रहा है,
झूले पर पेंगे मारना और अचानक गिर कर उठ जाना याद आ रहा है,
जेबों में मुरमुरा, रेवड़ी भर कर भाग जाना याद आ रहा है,
उसकी रचना कुछ इस तरह होती, न जाता भाग यूँ बचपन हमसे ,
मैं ही नहीं शायद हर किसी को दिन बचपन के हमेशा ही याद आते हैं,
एक दुसरे संग मुस्कुराते, खिलखिलाते,
मस्तियों भरा वो बचपन फिर याद आ रहा है,

 है कोई जो मुझको बस एक बार लौटा के दे जाये,
 बीते बचपन के दिन जो याद मुझको इस कदर आ रहा है ॥

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