Wednesday, December 31, 2014

नववर्ष की शुभकामनाएं


लो आ गया फिर एक नया साल लेकर खुशियों की सौगात,
जाते-जाते एक बार फिर याद दिल गया बीते सालों की,
फिर याद दिला गया एक बार याद मीठे बचपन की,
मोहल्ले के एक टी, वी, में एक साथ मानते नए साल की,
, याद दिला  गया मूंगफली के साथ गुड़ की ढेली की ,
साथ बैठते धूप सेंकते ठहाकों में गुजरे हसीं लम्हात की,
कुहासे की चादर असमान में और दादी की गर्म बिस्तर  की ,
याद दिला गया दादा-दादी और नानी के आशीर्वाद की ,
इंटरनेट और फोन के ज़माने में याद दिला गया ट्रंककाल की,
चिट्ठी-पत्री  हुई गुजरे ज़माने की बात की , 
अब तो फोन काल भी हुई बात बीते ज़माने की ,
हर ओर बस गूँज मची है फेसबुक और व्हाट्स आप की ,
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादों को छोड़ स्वागत हो नयी उम्मीदों की ,
लो आ गया फिर नया साल ले कर सौगात खुशियों की॥
आप सभी को एक बार फिर से मेरी और से नववर्ष की शुभकामनाएं ॥।

Thursday, December 18, 2014

पुत्र प्यारा माँ का ,

शोर हर ओर इस तरह क्यों मचा हुआ है ,दर्द कोई बांटता क्यों नहीं उस माँ का,
सुबह गया जो काँधे पर बैग टांग ,आया नहीं अभी तक दुलारा आँख का तारा वो माँ का ,
सब अपने - अपनों को तलाशते, कोई एक तो आये आगे बढ़ कम जो करता गम उस माँ का ,
 कोई आकर इतना तो बतला जाता उस माँ, को इस जहाँ में अब नहीं है पुत्र प्यारा उस माँ का ,
बंद डब्बे में रखा था खाना माँ ने प्यार से ,क्या पता अब कोई न रहा खाने वाला लाडला उस माँ का ,
अपने पीछे की सीट पर बैठा छोड़कर जो पिता आया ,नहीं आएगा वो पुत्र प्यारा माँ का ,
आँसुंओं से दामन को भिगोती, सोचती काश आज न भेजती जो बेटे को तो साथ होता पुत्र उस माँ का ,
अपने सीने से लगा एक बार जी भर अब कभी भी न रो सकेगी ये दर्द कौन समझेगा माँ का ,
दहशतगर्दों को जन्म दिया है जिस माँ ने,किसी रोज दर्द हो ऐसा तब हाल-ए -दिल देखना है उस माँ का,तो 
अब वक्त आ गया है साथ मिल,हो जाओ एक  मिटा दो निशान ऐसे बेदर्दों  का जिन्होंने आंसू बहाया है माँ का ॥


 

Wednesday, October 29, 2014

दीप जलाऊँ तेरे संग

खुशियों और उमंग से भरा दीप लड़ियों का दीपावली है त्यौहार ,
मन हो रहा है उदास उन मासूमों की खतिर ,
नहीं है पास जिनके कोई साधन जो मनाएं वो भी एक बार ख़ुशी से त्यौहार ,
क्या लाऊँ ,क्या बनाऊँ सूची बनाने  को मन फिर भी है बेक़रार ,
मिटटी के दिए अपने द्वार जलाने को लायी हूँ मैं इस बार ,
मन में थे यह विचार हो जायेंगे रोशन शायद उनके भी  आँगन और द्वार ,
जिनके मिटटी से सने हाथों ने दिया इन दीयों को रूप और आकार ,
चमकती ,सजी दुकानों को छोड़ पीछे ले आयीं मैं शगुन के बर्तन ,
जो सजा कर बैठे थे छोटी सी दुकान को बस एक फिट के फुटपाथ पर,
सोने के नहीं, चांदी के नहीं, लाई  हूँ मैं मिटटी के भगवान घर अपने इस बार ,
शायद ऐसा करने से उन मासूम आँखों भी चमक जाएं चांदी से  इस बार ,
नकली सुगंधों से भरे फूल मालाओं को मैं छोड़ आई हूँ बाजार में इस बार ,
ख़ुशबुओं से भरे फूलों की लगाउंगी मैं माला अपने द्वार ,
टिमटिमाती बिजली की लड़ियों नहीं जलाऊँगी इस बार ,
मन में सोचा और ले आई हूँ मोमबत्ती के कुछ बण्डल मैं इस बार ,
जिनको तराशा है किसी मासूम से नेत्रहीन के हाथों ने ,
मन में है ख़ुशी और बहुत सा है सुकून यह सोचकर ,
शायद मैंने अपने संग किसी के घर को भी किया रोशन इस बार  ……
आओ सब मिलकर मनाएं इसी तरह से कुछ दीवाली और मनाएं हर त्यौहार  ॥

Tuesday, September 23, 2014

नवसंचार पर्व नवरात्रि ,

ज्ञान,समृद्धि ,अनुकम्पा से परिपूर्ण माँ के पर्व  का है प्रतीक नवरात्रि ,
बदलते हुए मौसम संग तन के नवसंचार करने का पर्व है नवरात्रि ,
हो चाहे चैत्र या हो शारदीय ,होते हैं बड़े ही शुभ दिन नवरात्रि के ,
शैलपुत्री ,ब्रह्मचारिणी ,प्रथम और द्व्तीय,चंद्रघंटा तृतीय रूप में कहलाती माँ ,
चतुर्थ रूप में कूष्माण्डा,पंचम स्कंदमाता रूप में पूजी जाती माँ ,
छठम रूप में कात्यानी ,और सप्तम कालरात्रि कहलाती माँ ,
अष्टम तेरा रूप महागौरी है माँ, नवमी में सिद्धिदात्री कहलाती माँ ,
नव रूपों से पूर्ण माँ नवरात्री में महिमा अपरम्पार हो जाती माँ ,
विषम संकटों से भक्तों की नैया पार लगाती माँ ,
करता तेरा स्नेह पूर्वक स्मरण जो उसका बेड़ा पार लगाती माँ
विष्णु प्रिय पुष्प कमल के आसन पर है विराजती तू माँ ,
चामुण्डा रूप में प्रेत पर और वाराही रूप में भैस पर विराजती है माँ ,
माहेश्वरी रूप में बैल पर,तो कौमारी रूप में मोर  पर विराजे माँ ,
आभूषणों से विभूषित ब्राह्मी रूप में हंस पर विराजे तू माँ ,
भक्तों की रक्षा करने लिए तू मदेवताओं के कल्याण हेतु
चक्र,गदा,शक्ति,हल,मूसल ,तोमर ,भाल ,त्रिशूल धारण करने वाली माँ
रौद्र रूप में तेरा दर्शन है  बहुत ही दुर्लभ माँ ,
पूर्व दिशा मैं ऐन्द्री ,अग्निकोण में अग्निशक्ति माँ ,
दक्षिणी में वाराही देवी भक्तों की रक्षा है करती माँ ,
उत्तर दिशा  कौमारी की ,ईशान  शूलधारिणी है विराजे ,
जाया और विजय  भक्तों की रक्षा करने वाली है माँ ,
जयंती,मंगला ,भद्रकाली ,कपालिनी काली,दुर्गा ,क्षमा ,
शिवा,धात्री ,स्वाहा स्वधा नामों का जिसने किया उच्चार माँ ,
कर देती हर कष्ट से उनका तो कल्याण माँ,
मधु और कैटभ संहारा माँ ,चणड और मुण्ड  को है  मारा माँ ,
शुंभ और निशुम्भ का कर मर्दन कर ,किया है सबका बेडा पार माँ ,
हे! चण्डिके सर्व बाधाओं से मुक्त करने वाली माँ ,
रोगों का नाश करने वाली,यश ,पराक्रम दिलाने वाली माँ ,
हम सबको सौभाग्य,आरोग्य और परम सुख का वर देना माँ ,
प्रचंड,दैत्यों के अभिमान को पल भर में तूने ही किया चकनाचूर माँ ,
देवी कवच ,अर्गला,कीलक और सप्तसती के पाठ  से किया जिसने भी तुझे प्रसन्न माँ ,
किया था तप जब सुरथ राजन ने तब नाश किया कोलविध्वंश दैत्य का माँ
जीवन दान दिया सुरथ को माँ ,
महिषासुर मर्दिनी ,ज्योतिरूपिणी भवबाधाएं हरने वाली माँ ,
कौमारी ,सरस्वती ,ब्रम्हाणी हे वैष्णवी तू है माँ।,
लक्ष्मी,शांति,क्षुधा ,मातृ,तृष्णा रूप में स्थित तेरे हर रूप को है नमस्कार माँ ,
साठ हजार सेनाओं वाले धूम्रलोचन का तूने ही वध किया था माँ ,
ब्रह्म ,शिव ,कार्तिकेय ,विष्णु,इंद्र समस्त देवताओं की शक्तियों से विभूषित होकर माँ
किया दैत्यों का नाश तूने माँ ,
कुमकुम अक्षत और पुष्पों से ,नैवैध ,धूप और अर्चन से माँ,
शुभ नवरात्री के शुभ पवन अवसर पर माँ
तेरे हर रूप,हर श्रृंगार के दर्शन से नवरात्री का पूजन कर माँ ,
अपने जीवन की नैया को पार लगाना हमको है माँ ,







Saturday, August 16, 2014

मिटते निशां

सत्य है,अटल है और अमिट  यह सत्य इस धरा का है,
 एक पुत्र को हमेशा वंश चलाने वाला कहा गया है ,
आज सुनाती  हूँ मैं सच्ची एक कथा है ,
एक कुल चलाने वाले के फना हो जाने की यह दर्द भरी दास्ताँ है,
एक वंश चलाने वाला लावारिसों की तरह फना हो गया है,
इस खबर ने मेरी पैरों तले जमीन को खिसका लिया है
एक पिता के सपनों को साकार करने वाले पुत्र की यह हकीकत बयां करने जा रही हूँ ,
हो जाएँ आँखें नम तो खुद से गिला न करना,
दूसरों के दुःख में रोता है हर कोई यहाँ पर ,
इंसान वो तो था सच्चा ,नेक और रहमतों से भरा  था उसका भी दिल ,
अपनों को तो मोहब्बत करता है हर कोई,
वो तो बहाता  था आँसूं दूसरों की खातिर भी ,
जीवन के नए अध्याय को शुरू करने को कदम जब उसने रखा था ,
हर ख़ुशी और गम को साथ कसमें उसने भी पत्नी संग खायीं थी ,
हर वचन बखूबी निभाता चला जा रहा था ,
नहीं था मालूम वो इतना खुशनसीब भी न था ,
दूसरों पर स्नेह लुटाने वाले को हर ख़ुशी के लिए भी तड़पना था,मालूम न था ,
अपने आँगन में गूंजे एक किलकारी ऐसी उसने भी की थी तमन्ना ,
साल दर साल बीतते रहे न हुआ आबाद उसका आँगन था ,
मंदिरों में भी उसने मस्तक अपना झुकाया था ,
मस्जिदों में भी उसने मस्तक था उसने रगड़ा ,
गिरिजाघरों की घंटियों का नाद से दिल अपना हल्का किया था ,
नहीं था कोई दर ऐसा जहाँ उसने न शीश नवाया था ,
पुकार उसकी एक रोज आसमान के फ़रिश्ते ने कुछ इस तरह सुनी थी ,
आँगन में फूल उसके भी एक रोज खिल ही गया था ,
किलकारियों से उसके मन का दरबार खिल गया था ,
अपनी हर ख़ुशी वो अपनों संग झूमते -गाते मना रहा था ,
माता -पिता का लाडला खिलखिलाते हुए यूँ बढ़ रहा था ,
वक्त बीतता रहा था ,माता पिता के साये में वो पुत्र बढ़ रहा था ,
माता के आँचल  को छोड़ वो अब रफ्ता -रफ्ता बढ़ रहा था ,
घुटनों पर चलने वाला पैरों पर खड़ा हो ये कोशिशें कर रह था ,
ऊँगली पकड़ स्नेह भरे पिता ने उसे चलना सिखा दिया था ,
तोतली सी आवाज में माँ- पापा भी कहना वो अब सीख गया था ,
उसकी हर अदा पर उनका दिल गदगद हुआ पड़ा था ,
आँखों के तारे की हर गलतियों को,
उन्होंने यूँ ही नजरअंदाज कर दिया था ,
जानते न थे जिंदगी में उनका सबसे बड़ा गुनाह यही था ,
वक्त बदला पुत्र ने भी यौवन की दहलीज में कदम रख दिया था ,
गलतियां थीं जो छोटी अब गुनाह को दस्तक दे रही थीं ,
हर रोज हर ओर से शिकायतों का सिलसिला यूँ चल पड़ा था ,
पिता की चिंता का सबब अब दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था ,
आहिस्ता-आहिस्ता ही सही पुत्र के कदम लड़खड़ाने लग गए थे ,
अंधी थी माँ की ममता अब भी न सम्हल रही थी ,
हर गलतियों पे पर्दा यूँ डालती जा रही थी ,
सबका दुलारा था जो सबकी आँखों में अब खटक रहा था ,
हर रिश्ता उससे अपना अलग होता जा रहा था ,
पिता का था जो लाडला अब नशे के दलदल में धंसता ही  जा रहा था ,
हर गम को दिल में दबाये एक रोज पिता ने जहाँ को छोड़ दिया था ,
आमदनी का अब तो कोई  जरिया न रह गया था ,
माता की ममता ऐसी अंधी अब सम्हल न रही थी,
साजो-सज्जा का हर सामान ,बाजारों की शोभा बढ़ाने लग गया था ,
नशे की जंजीरों ने उसको कुछ तरह से जकड़ लिया था ,
घर का हर बेशकीमती सामान अब बेक़ीमत ही बिका जा रहा था ,
माँ की ममता ने उम्मीद का दामन  अब भी न छोड़ा  था ,
 पता न थो उसको उसको ही एक रोज बेघर करने की फ़िराक में वो पुत्र जी रहा था
गम की आंधियों में कब तक वो खुद को सम्हाल पाती ,
एक रोज उसका साया उस पुत्र के सर से उठ गया  था,

 

  सुना था मैंने ऐसा वो बेसहारा  अब दूसरों के टुकड़ों पर पल रहा था ,
अपना सब था जिसका दूसरों का हो गया था ,
घर का तिनका -तिनका बिका वो  छोड़ो उसका तो अब घर भी न रह गया था ,
जियेगा कैसे अब ये किसी को समझ न आ रहा था ,
तन उसका जर्जर ईमारत सा हुआ चला जा रहा था ,
एक रोज ऐसा आया उसने भी दम अपना तोड़ दिया था ,
खबर सुनी तो आँखों का कोर मेरा भी नम हुआ था ,
कुछ तो रिश्ता मेरा भी था,गोद में अपनी मैंने भी तो खिलाया  था ,
शव को उसके हस्पताल में लवारिसों सा रखा गया था ,
तोड़ गए थे अपने  जो नाता उससे, आकर उन्होंने उसके शव को ,
दो गज जमीन तो नसीब करा कर कुल का नाम भी दिया था ,
कब क्या हो ,कैसे हो ,नहीं मालूम किसी को ,
इस जीवन की यही सत्यता है ,
पर हाँ यह भी एक सत्य था  एक कुल चलाने वाला ही नासूर बन गया था ,
अपनी ही  माता पिता का नाम को वो  डुबा गया था। ……
 


Tuesday, August 5, 2014

आजादी के मायने

हर शख्स कहता है इस जहाँ से जाने वाले चमकते हैं,


 उस जहाँ में सितारे बनकर ,


जो शहीद हुए हैं हिन्दोस्तान के वास्ते ,

क्या वो भी चमकते होंगे  तारे बनकर ,


गर ऐसा है तो उनकी आँखों से बरसते होंगे ,


आसूं इस धरा पर शबनम की बूँद बनकर ,


देख कर दुर्दसा इस आजाद देश की 


मुश्किलों का सामना कर के दिलवा गए जो आज़ादी ,

गुमनामियों में खो कर नाम हमको दिखा गए हसीं सपने ,


है कोई आज ऐसा जो बन सके सुभाष चन्द्र ,


है किसी में दम इतना जो बन सके बापू महात्मा


यहाँ तो हर किसी को पड़ी है अपनी -अपनी


कैसी आजादी और  कैसी गुलामी ,


हर शख्श करने में लगा है जेब अपनी भारी ,


न याद करते हैं नेता उनकी कुर्बानियों को ,


एक -दुसरे पर छींटा -कसी करने से फुर्सत कहाँ किसी को ,


एक दिन के लिए बस याद कर लिया करते हैं उनको ,


बहाया जिन सैंकड़ों ने इस धरा पर लहू था ,


दिन आता है जब स्वतंत्रता दिवस  का ,


याद आ ही जाती है उन बेशुमार शहीदों की ,


चमचामते कपड़ों में झंडा लहराना तो याद  रहता है


पर क्या याद एक भी शहीद के नाम उनको होंगे ,


तिरंगा फहराने की परम्परा को यूँ ही साल दर साल ,निभाए जा रहे हैं ,


कैसी है ये आजादी ,जिस देश में हर नौजवान ,


नशे की बेड़ियों में यूँ जकड़ता जा रहा है ,


कैसी है ये आजादी, जो आज भी पश्चिमी सभ्यता में जकड़ा हुआ है ,


अब तो आजादी के असली मायने समझने होंगे ,


एक बार उनकी कुर्बानियों फिर से याद दिलाना होगा ,


इस देश के हर नौजवान को जागना ही होगा ,


नशे से दूर रहकर कुछ कर गुजरना होगा ,


तड़पती धरा की सिसकियों को फिर महसूस करना होगा ,


अन्यथा नहीं है दूर वो बदनसीब दिन।,


ये देश एक बार फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा होगा ॥ 


Monday, August 4, 2014

bharosa


वक़्त जो बुरा आया है टल जायेगा ,

रात अँधेरी हो कितनी ही फिर सवेरा आएगा ,

गम की घटाएं गर आयीं है फ़िक्र न करना ऎ दोस्त,

ये वक़्त भी गुजर जायेगा

आस्मां मैं बैठे फरिस्ते पर हर वक़्त रखना भरोसा ,

गर अँधेरा दिया है उसने तो उजेला भी वो ही देगा ॥

हर रोज सभी के जीवन में मुश्किलें तो आती हैं ,

गर हो भरोसा अपने पर न कोई कदम डिगा पायेगा ॥ 


Friday, July 25, 2014

द्रौपदी का दर्द

महाभारत का कलंक उस द्रोपदी के सर सबने मढ़ा था।
उस अग्नि पुत्री द्रोपदी को बांटा गया पांच पांडवों में था,
उस पल द्रोपदी के मन का दर्द जाना किसी ने भी न था ,
जंगलों में भटकती पांडवों संग द्रोपदी के दर्द का जाना किसी ने न था 
मामा शकुनि की कुटिल चालों का कुछ गुमान धर्मराज को न था 
क्या कुसूर था उस  द्रोपदी का था जो हारा उसे जुएं में गया था 
केशों से घसीटी गयी निर्वस्त्र करने को  बेताब दुशाशन बड़ा था 
क्या कसूर द्रोपदी का था ,भरी सभा  में वेश्या उसे पुकारा गया था ,
खींचा गया केशों से अपमानित किया गया  द्रोपदी को  था ,
माना ,दृष्टिहीन  थे राजा ध्रितराष्ट्र ,
पर क्या औरों की नजरों में ये कोई अपराध न था 
देखते सभी रहे थे उस घडी द्रोपदी के दर्द को महसूस किसी ने न किया था ,
पितामह भी तो नज़रें झुकाये  मूक दर्शक बने भरी सभी में बैठे रहे थे 
माता गंधारी ने तो पहले ही आँखों पर पट्टी बाँध ली थी 
द्रोपदी के दर्द को न जाना किसी ने भी न था ,
थक हार अपनी लाज बचाने को 
श्री नंदन को पुकारा द्रोपदी ने थे ,
आकर श्री कृष्ण ने अपना कर्ज उतार दिया था ,
एक ऊँगली पर बाँधी हुई 
एक चीट का कर्ज यूँ उतारा था,
द्रौपदी के मन का दर्द जाना किसी ने भी न था ॥ 

Friday, July 18, 2014

यादें

कलेजे के टुकड़े को विदा कर के जब से आई हूँ ,

                                   दिल से जैसे कुछ निकल सा गया है ,
जानती थी एक न एक दिन ये तो होना ही था,

                                   मगर फिर भी अजब बेचैनी सी दिल में है ,
अब से ही दिन गिनने लग गयी हूँ, 

                                      उसके आने का इन्तजार करने  लग गयी हूँ ,
हर बात उसकी याद दिला कर,

                                      आँखों को नम  कर जा रही है बार-बार यूँ ,
न जाने किस तरह से बिता पाऊँगी,

                                     बिन उसके, अपने दिन और रात यूँ ,
मजबूत कर रही हूँ दिल को अब,

                                     कैसे भी उसके बिना बिताना ही होगा दिन यूँ,
बार-बार सोच रही हूँ की आँखों को,

                                 नम न होने दूँगी मैं,फिर भी रोक न पाती हूँ ,
उसकी छोटी-छोटी बातों को,

                                 याद करने के सिवा कुछ बाकि ही नहीं है ,
दिल को मजबूत करने की,

                                        कोशिश भी नाकाम हो रही है यूँ ,
उसकी यादों के सहारे दिन बिताने की,

                                  अब कोशिश दिन-ब -दिन करूंगी ॥ 

Tuesday, July 15, 2014

पिता का प्यार

 एक पिता पुत्र के प्रेम की अजब दास्ताँ है,
ऊँगली पकड़ चलना सिखाता जिसे पिता है ,
बचपन में जो पुत्र  आँखों का तारा होता है ,
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही 
पिता के दिल से उतरने लगता वो पुत्र है 
कल तक जो अपना था वो अचानक पराया हुआ जाता है ,
हर पल तिरस्कृत पिता से हुआ जाता है 
कभी आदतों के तो  कभी चाहतों के पैमाने पर खरा नहीं उतरता वो पुत्र ,
कभी क़दमों के बहकने के तानों से घिरा  जाता है पुत्र 
पिता की नज़रों से दूर जाता हुआ वो पुत्र 
 अपनी ही आँखों में गिरा जाता है वो पुत्र ,
 माँ की आँखों का तारा सदा ही होता है पुत्र ,
हर तूफ़ान से बचा लाने का साहस 
सिर्फ और सिर्फ माँ में ही होता है ,
अचानक जब पार लगती है नैया पुत्र की 
पिता का प्यार एक बार फिर उमड़ आता है ,
सर पर प्यार का अब पिता  हाथ फिराता है ,
लोगों से अब कहते नहीं थकता कि पुत्र मेरा है ,
रोशन कर दिया मेरे कुल को आज जिसने ,
क्या हर घर की ऐसी ही दास्ताँ होती है ,क्या पुत्र की ये ही कहानी होती है ,
कैसी विडंबना इस धरा पर है ,पिता पुत्र के प्रेम की ये अजब दास्ताँ है 


Sunday, July 13, 2014

mausam

हर निगाह में हज़ार सवाल थे ,आसमान में एक भी बादल का टुकड़ा  भी नहीं था ,
एक बूँद की आस में पक्षी भी गगन मे ताक रहे थे ,एक बूँद की आस में हर कोई था ,
चटकती ,चिलचिलाती धूप का सामना कर सके ऐसा साहस अब किसी में भी नहीं था ,
सावन के महीने ने दे दी थी दस्तक फिर भी बादलों का जमावड़ा कहीं नज़र आता नहीं था ,
पेड़ पौधों की रौनकें खो सी गयी हैं ,धरती भी हसरत भरी निगाह से गगन को देख रही है ,
एक सवाल धरा की आँखों मैं भी है ,कब आओगी बरखा रानी और कितना इंतज़ार करना होगा ,
आज अचानक काले घने बादलों ने आकर घेर ऐसा लिया आसमान को ,
इंद्र देवता ने यूँ भिगोया कि  धरा संग हर ओर  ख़ुशी की लहर सी दौड़ गयी है , 
ऐसा लगता है अब सावन आ गया है,झूले न सही एक प्याला चाय संग मौसम का लुत्फ़ उठा ही लिया जाये ॥ 
                                                                        

Saturday, June 21, 2014

कुआँ

दोस्तों, एक वो भी समय था जब हर जगह पानी के लिए केवल कुएं और तालाब होते थे।  धीरे-धीरे इंसान की काबिलियत बढ़ी और शहरों में नदी का जल साफ़ करके घरों में पाइप के द्वारा पानी पहुँचने लगा ,फिर पानी की कमी हुई तो पंप के द्वारा पानी का प्रेशर  बढ़ा लिया गया ,ऐसे ही बस कुओं को लोग भूलते जा रहे हैं ,अब तो गांव में भी जगह-जगह हैंडपंप लगा लिए गए कुछ तो सरकारी और कुछ अपने ही खर्च से ,वहां भी कुएं बस कहीं-कहीं ही दिखाई देते  हैं । 
कुओं का पानी श्रोतों के द्व्रारा निकलता है ,किसी-किसी कुएं में तो जल के कोइ श्रोत होते हैं ,कुओं में उत्तर कर साफ़ करने की भी व्यवस्था होती है ,साथ कई जगह तो कुओं को सुरक्षित रूप से ढक कर भी रखा जाता था।
और तालाबों की हालत तो कुओं से भी बदतर होती जा रही है ,जिस वर्ष पानी ठीक-ठाक बरस जाये तब तो तालाब में पानी दिख जाता है वरना तालाब भी बस सूखते ही जा रहे हैं । 
मुझे याद  है बचपन में हम जिस घर में रहते थे वहां भी एक कुआँ था और उसी से हम सभी पानी निकाल कर इस्तेमाल किया करते थे ,कितनी कसरत हो जाती थी पानी भरने और ऊपर लेकर आने में। जीवन के वो क्षण कभी नहीं लौट कर आते हैं ,आज यदि कोई ऐसे कुएं से पानी भरने को कह दे या फिर कहीं कुएं से पानी भरना भी पड़  जाये तो पहले ही बीमार पड़ने की चिंता सताने लग जाएगी । 
हिन्दुस्तान भर में कितने कुएं और तालाब थे इसका विवरण तो मालूम नहीं है पर हाँ आज में आप सबके साथ कुओं के बारे में एक रोचक बात शेयर करने जा रही हूँ -------

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले का नाम रायबरेली है जहाँ हमारा पैतृक घर है। उस शहर का नाम यूँ तो श्रीमती इंदिरा गांधी से जुड़ा है ,पर शायद ही किसी को ये मालूम होगा की रायबरेली में ही एक मोहल्ला है जिसका नाम किला बाजार है और वह एक बहुत बड़ा कुआँ था ,जो की अब नाम मात्र का रह गया है किताबों में शायद क्यूंकि मैं भी काफी समय से वहां गयी नहीं हूँ ,पर जिस समय वह कुआँ दिखता था वह सचमुच काफी बड़ा था ,कहा ये जाता था कि एक बार उस कुएं में इतना अधिक पानी बारिश के कारण बढ़ गया की पूरा शहर बाढ़ में डूबने सा लगा था तब इस कुएं को ८० ,मन के लोहे  के तवे से  ढक दिया गया या यूँ कहिये की इस कुएं में ८० मन का लोहे  का गोल चक्का डाल दिया गया जिससे इसका सारा पानी उसके नीचे दब गया ,हमें याद है हम जब भी रायबरेली जाते थे उस कुएं को देखने जरूर जाते थे। तब वहां अक्सर गाय,भैंस आदि घास चरते नज़र आते थे। 
कुओं के बारे में ऐसी मान्यता है कि कुछ कुएं ऐसे होते हैं जिनमें यदि कोई गिर जाये तो उनका पानी अपने आप ऊपर आ जाता है और गिरने वाले की जान का कोई नुक्सान नहीं होता है ,और कुछ कुएं ऐसे होते हैं कि जिनमें यदि कोई गिर जाये तो उनका पानी सूख जाता है और ऐसे में भी गिरने वाले को कोई नुक्सान नहीं होता है ,पर कुछ कुएं ऐसे होते है जिमें यदि कोई गिर जाये तो फिर वो चाहे जानवर ही क्यों न हो उसमें डूब कर मर जाता है ,यानि की वो कुआँ अपने श्रोत में गिरने वाले को डूबा देता है । 
मैंने जो भी यहाँ लिखा है इस पर शायद ही किसी को विशवास हो पर यह घटनाएं मेरी खुद की देखी हुई हैं। 
इसीलिए मैंने यहाँ लिखी है । 
हम जहाँ लखनऊ में रहते थे वहां के कईं में बार ऐसी घटना हुई थी ,कभी बकरी,कभी बिल्ली और कभी कुत्ता गिर गए और उस कईं का पानी अचानक से इतना ऊपर आ जाता था कि गिरने वाले जानवर बिना किसी सहायता के बाहर  आ जाते थे। 
एक बार तो एक लड़की ने उस क्यों में छलांग लगाई और तब भी ऐसे ही हुआ। 
ऐसे ही हमारे गांव में एक कुआँ था जिसमें कितने ही जानवर गिर कर मर गए । 


Friday, June 20, 2014

नयी पहचान

अवसाद से घिरी जिंदगी बेवजह जिए यूँ ही जा रही थी मै,

                               बंद जुबान से हांथों को बस हिलाते हुए दिन बिताती जा रही थी मै,
अपनों के बीच खड़े रहने की न थी ताकत हममें ,
                          हर रोज एक नयी उलझनों में उलझी थी जिंदगी ,
कोई अपनी नयी पहचान बनाने को बेताब थी मैं,
             एक रोज किसी अपने ही अज़ीज़ ने  रौशनी की किरण दिखा कर,
                                                              जिंदगी रोशन इस तरह से कि बस क्या कहें ,
माना बहुत छोटा था वो अज़ीज़ मेरा पर जो,
                                                थमा  गया हांथो में में मेरे वो किसी कोहनूर से कम  न था।
वक़्त ऐसा अब बदल गया है दोस्तों ,
                                         तन्हाइयों को भी करना पड़  रहा है इंतज़ार हर पल मेरे लिए
कहीं आंधियों के बीच मेरे मन का अवसाद खो सा गया है ,
                                                   अब तो फुर्सत ही नहीं उलझनों के लिए भी ,
देखते  वो जो अपने ही थे,  ऐसी हेय  नज़रों से ,
                                                  नज़र  उनकी भी अब बदल सी गयी है,

हकीकत से ऐसे भी सामना होगा सोचा न था ,

                                              लोगो को बदलते इस तरह देखना होगा सोचा न था ,
 सूरज के उजाले का मंजर देखते ही रहने को मन करता है
                                         ऐसी खुशनुमा जिंदगी जीने का अब मजा आने लग गया है ॥ 

Thursday, June 19, 2014

हैसियत

समझते हैं जो खुद को ही बस तुर्रम खां ,

                                                   या खुदा उनको भी कुछ अक्ल बख्स दे ,
सामने वाले भी कुछ हैसियत रखते हैं ,

                                               जिन्हें देखते हों वो जिल्ल्त भरी निगाहों से 

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कहते हुए भी शर्म आ रही है उनको अपना कहते,
                                        दूसरों को नीचा दिखाने की चाह में खुद ही गर्त में चले जाते हैं ।
उनको तो अंदाजा भी नहीं है की जिनको ,
                                       वो कुछ नहीं समझते हैं वो दुनिया खुद में मशहूर हुए जा रहे हैं ॥ 

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आज न जाने क्यों उनकी काबिलियत पर हंसने को मन कह रहा है ,
                           जिनको लगता है की हम तो बस यूँ ही जिंदगी जिए  जा रहे हैं ,
नहीं जानते हैं वो हमारे चाहने वालों की लम्बी कतार लगी जा रही है ,
                         कोई ये तो पूछे उनसे जाकर कि इस कतार में वो कहाँ गुम  हुए जा रहे हैं ॥ 

Thursday, June 12, 2014

राहत

बहुत तपा कर सूरज ने अपनी गर्मी से हाल-बेहाल कर दिया था , ,
               कुछ बारिशों की बूंदों ने दिखा कर अपनी झलक से सबको खुश कर दिया है ,
न बरसे झूम कर तो भी क्या थोड़ी तो राहत दिला  ही देगीं ये बूँद बारिशों की
                       एक बार जो बरस जाएणी ये झूम कर तो चाय और पकोड़ों का सिलसिला हो शुरू
दोस्तों संग नहीं तो बचपन की यादों के संग मस्ती भरी शाम बिताने का हो सिलसिला शुरू।
                               लो आज थोड़ी सी राहत दिलाने बूँद बारिशों की आपके आँगन चली ॥    


Thursday, June 5, 2014

जेठ की दोपहर

जेठ की तपती दोपहर है ,
                                                आसमान से आग के शोले बरस रहे हैं ,
हर तरफ सन्नाटा सा दिखता है ,
                                                  दरख्त भी शांत पड़ से गए हैं ,
सूरज पहले भी तो इसी तरह अपनी प्रचंडता,
                                                    दिखाता था जेठ की दोपहर में ,
पर शायद इतना बेचैन न होता था इंसान , ,क्यों?
                                              साधनों की कमी किसी को मौसम के मिजाज परेशान न  करते थे ,
नीम या पकरिया के नीचे दोपहर बिता दिया करते थे लोग ,
                                                  प्रकृति अपने नियमानुसार चल रही है इंसान ही बदल गया है अब
जड़ से काट फेंकता है इंसान ,जो दरख़्त छाँव देते है ,
                                             जल ही जीवन है कहने वाले खुद ही प्रदूषित उन नदियों को कर रहे हैं ,
छतों पर सोने वाले अब कमरों में सिमट से गए हैं ,
                                        शाम को भी तो कोई नज़र नहीं आता है अपने आँगन या बालकनी में ,
टीवी से फुर्सत नहीं है और न ही फुरसत है मोबाइल से ,
                                  वो वक्त भी क्या था जब पानी की बौछारों से ठंडा करते थे अपने आंगनों को
और सजा करती थीं महफिलें ,ताश और चौपड़ के संग
                                                           जाने कहाँ वो दिन चले गए ,जाने कहाँ वो लोग
अब तो बस तपती हुई दोपहर में एक बूँद आस्मां से टपके इसी आस में जिया करते हैं ॥


Saturday, May 31, 2014

आंधी आने की ख़ुशी

तचती,तपती धरती पर कैसे सूरज आज उगल रहा था,

बादलों से धरती का यह दुःख न देखा गया था,

इंसान पसीने में तरबतर देखता ऊपर बादलों की ओर है ,

सोचता है काश कहीं से कुछ बादल ही आ जाएं सर पर, 

थोड़ी तो राहत मिल जाये इस घमस भरी  धूप  से ,

बादलों को तो जैसे बस इसी का इंतज़ार था ,

आज  अचानक जाने कहाँ से काले बादलों ने धुंध की काली चादर। 

अपने ऊपर ओढ़कर ,कैसा तूफ़ान मचाया था। 

कहीं दीवार का गिरना और कहीं पेडों का जमीदोज होना। 

कहीं घरों की छतों का सामान उड़कर दूसरों की छतों पर जा टँगना। 

जो खड़े थे सालों से जमकर खम्भे भी आज अचानक धड़ाम हुए,

कोई नहीं फिर भी सभी के चेहरों पर कुछ तो सुकून दिखाई दिया ,

हैरान परेशान थे जो गर्मी से इस आंधी और तूफान से ,

कुछ तो ख़ुशी यूँ नज़र आई ,आज ऐसी धमाचौकड़ी करती एक बार फिर से आंधी आई ॥ 


Wednesday, May 28, 2014

unknown

उलटे क़दमों पर चलकर उनके क़दमों के निशाँ ढूंढना चाहती हूँ।
ख्वाहिश दिल में है उनके होंठों से अपना नाम सुनना चाहती हूँ ।।
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दूर तक देखा न आये तुम कहीं नज़र ,
                                                          हुई एक आहट  पास नज़र आये ॥ 

________________________________________________________________करती हूँ तेरा इंतज़ार बड़ी बेकरारी से ,
                                            यकीन न हो तो पूछ लो जरा बिस्तर की  सलवटों से ॥ 

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Saturday, May 24, 2014

मैं

वो कहते हैं उनकी निगाहों मैं एक बार देखो तो जरा,

प्यार के छलकते पैमाने नज़र आयंगे ,

                                                    "हेम " के लिए 
वो  कहते हैं उनके होंठों की थरथराहट को देखो तो जरा , 

         प्यार  भरे  लफ्जों का हँसी मंजर ही नज़र आएगा ,           

                              "हेम" के लिए 

     

वो कहते हैं उनके सीने की धड़कन को महसूस तो कोई करे ,धड़कता दिल ही नज़र आएगा

                                                   "हेम" के लिए 

सब कुछ तो नज़र आ ही गया  उनके जज्बातों में.

प्यार बेइंतिहा नजर आता है 

                                                       बस "हेम"  के लिए।  

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Tuesday, May 20, 2014

unknown

आपके क़दमों के निशान मिटने न देंगे हम कभी ,
बस एक बार पड़ ही जाएं आशियाने में मेरे ॥
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आह भरती एक माँ का दर्द आंसू बन कर आँचल में आकर छिप गया ,
पाला थे जिस एक बेटे को अरमानों संग वो बेटा ही आज बदल गया ,
सोचा कभी उसने नहीं जिस आँचल में महक उसके आँसू की थी
वो  ही आँचल उस माँ के आँसुंओं का बसेरा बन गया है ॥ 

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Monday, May 19, 2014

वक्त

आसमान से उगलते सूरज की तपिश ने,
                                            दरवाजों में बंद कर दिया है लोगों को ।
जाना  है जरूरी जिन्हें बाहर वो, 
                                            निकल जाते है दिन चढ़ने से पहले । 
गर्मियां तो तब भी आती थीं ,
                                               और   तपती थी ये धरती तब भी । 
एक वो भी ज़माना था,
                                            जब घरों में न होते थे पंखे और कूलर । 
न किसी की खिड़की में ए -सी 
                                             के डब्बे और कूलर नज़र आते थे । 
खिड़कियों को भी  खस के पर्दों से  भिगो कर
                                         ठण्ड का अहसास मात्र कर खुश भी उसी में हो जाते थे । 
अक्सर नीम की छाँव में बैठ कर दिन सारा बिता देते 
                                           शाम होते घरों के आँगन को ठंडा पानी के छिड़काव से कर लेते । 
याद है मुझे वो दिन भी जब पर्दों को 
                                                  पानी में भिगो कर खिड़कियों में टांग देते थे । 
और ठण्ड होने का हसीं अहसास यूँ ही कर लेते थे ,
                                               बाजार से लेकर बर्फ के टुकड़े पानी ठंडा कर लेते थे । 
एक ही छत  पर मोहल्ले के सारे बैठ गपशप में शाम यूँ ही बिता देते। 
                                           कहीं कैरम,कहीं पत्ते खेल शाम को हसीं बना लेते । 
 चाय तो दूर सही शरबत भी बमुश्किल पीते थे ,
                                         घड़े के ठन्डे पानी का सोंधापन आज भी याद आता है । 
वक्त बदला  छतों में पंखे भी टँगने लगे ,
                                             धीरे-धीरे खिड़कियों में  कूलर भी नज़र आने लगे । 
ठन्डे पानी के लिए फ्रिज फिर डबल-डोर फ्रिज, 
                                       और अब तो बड़े से बड़े फ्रिज लेन की होड़ लगने लगी है । 
घरों की खिड़कियों में जिनके नहीं ए -सी का डब्बा दिखाई देता, 
                                            बड़ी ही हेय नज़रें उनकी खिड़कियों की ओर जाती हैं । 
मगर पूछो कोई उनसे क्या अब वो प्यार नज़र आता है ,
                                           जो छतों पर एक साथ सोने और खेलने में आता था । 
बच्चे भी अब बचपन में ही बड़े होने लग गए है ,
                                        यारों काश ऐसा हो जाये वो दुनिया फिर एक बार लौट आये । 
वक्त ऐसा अब बदल गया है यारों ,
                                         कि अपने ही अपनों से बनाने लगे है दूरी ॥ 


Sunday, May 18, 2014

जिंदगी

एक पिता के आँगन में जन्मी मैं
अपने अतीत से कतराती हूँ क्यों मैं
न जाने बीते समय को याद करना नहीं चाहती हूँ मैं
जो बीता वक्त था न आये किसी के सामने
जन्म लेते ही खो दिया माँ को मैंने
किसी और के दामन में छिप कर बिताया था बचपन मैंने
फिर बढ़ती उम्र के साथ सारे रिश्तों की समझ आने लगी जब
अपने और परायों का फर्क जानने लग गयी थी मैं
हर आँख में तरस नजर आता था अपने खातिर
किसी की आँखों का तारा नहीं थी मैं,
एक रोज उस पिता का साया भी उठ गया
जिसके आँगन की कली थी मैं
आँसुंओं के बीच अपने होने का अहसास हो ही जाता था
ऐसा लगता था की ज़माने में मुझ सा बदनसीब नहीं था कोई
दूसरों के आसरे बढ़ती हुई यौवन की दहलीज पर रखा था जब कदम
सोचती थी क्या ज़माने में सभी को इस तरह दर्द का सामना करना होता है
न जाने कब एक किरण रौशनी की मेरे जीवन में भी खिल गयी
एक राजकुमार मेरे जीवन की बगिया को यूँ महका गया
की बस सारे गमों को भुलाकर मेरी सूनी जिंदगी को बहार बना दिया
अब न कोई शिकवा इस जिंदगी से है ,न किसी अपने से है
उस आसमान के बन्दे से बस इतनी सी इल्तज़ा है
मुझ जैसा हर किसी को जिंदगी का तोहफा मिले ॥ 

Saturday, May 17, 2014

परिणाम

 लो खिल गया कमल और अच्छे दिन आ गए,
                                                               हांथों ने हाथ का साथ छोड़ दिया है।
आप की शमा तो ऐसी बुझी कि निशाँ
                                                              क़दमों के भी नज़र नही  आ रहे  हैं।
अब देखना बस इतना है कि कमल  कितने,
                                                              रंगों में खिल  कर शमा बिखेरता है ,
इंतज़ार अब बाद उन अच्छे दिनों का है ,
                                                            रामराज्य तो नहीं पर सुन्दर राज्य  तो बन ही जायेगा  ।
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Thursday, May 1, 2014

जिंदगी

सर्द हवाओं क लुत्फ़ अभी खतम ही न हुआ था ,

                                                      गर्म थपेड़ों ने चेहरे झुलसाने शुरु कर दिये हैं,
नहाने से थोड़ी देर की राहत तो मिलती है ,

                                                      पर नहाने के लिये पानी तो मिलना चाहिए ,
घरों में कूलर अभी लगनी भी न पाएं थे ,

                                                   कि कूलर मैं डेंगू का लार्वा ढ़ूँढ़ने लोग आने लगे हैं ,
ठंडा पानी गले को थोड़ी सी राहत दे देता है,

                                                पर पानी ठंडा करने को बिजली भी तो होनी चाहिए ,
अगर सोचो कि अपनों के संग कहीं पर्वतों पर,

                                                ठंडी हवाओं का लुत्फ़ लेने को चले जायेँ ,
तो जाने के लिये ट्रेन के टिकट निकालने के लिये,

                                               पैसे भी चाहिएं,रिजर्वेशन भी मिलना चाहिए ,
गर मिल भी जाये टिकट तो रहने को जगह,

                                               होटल में कमरा भी तो मिलना चाहिए ,
सब कुछ छोड़ो यारों ,घड़े ले आओ,

                                                ठंडा पानी पीकर हरि के गुन गाओ ,
मस्त होकर गर्मी का लुत्फ़ उठाओ यारों,

                                                   जब न होते थे  कूलर ,फ़्रिज़, और ए सी,
तो क्या गर्मी नही होती थी या हम इन्सान नही होते थे,

                                            ,,,,,,,,,,जिंदगी जैसी है ,जियो यारोँ वैसे ही ,
जो मजा असली में है वो नकली में है कहाँ -----------------------------------------------

Monday, April 21, 2014

dard

आज आंसुओं ने एक बार फिर भिगो दिया है आँचल,
                                                                उनके लफ़्ज़ों ने मेरे सीने को छलनी किया है ,
बात ऐसी भी न थी कि दर्द हमको दे दिया है ,
                                                               उनकी बातों ने हमेशा ही मुझे तन्हा किया है ॥ 

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कोई इस तरह से किसी से बेवफाई करता है क्यों ,
                                                  जो है दिल आपके सीने में मेरे सीने में पत्थर तो नहीं है ,
ज़ख्म इतने तो न दो ऐ मेरे सनम जो नासूर बन जाये,
                                                   कोरे कागज पर सिर्फ तेरा ही नाम लिखा रखा है ॥ 

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Friday, April 11, 2014

वापसी

लौट कर आ गए हैं फिर अपने आशियाने में ,

                                                   अब आप से मिलने की बस चाह है बाकी ,
खूब मस्ती में भी याद आपको ही कर रहे थे, 

                                                   मजबूरियां दरमियान थी न मिल पाने की । 


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चहचहाती चिड़ियों की तरह ही बेटियां भी होती हैं ,
                                                         पंख नहीं फिर भी आज यहाँ और कल कहाँ ,
जिंदगी में न हो दर्द किसी को बेटियों का ,
                                                        सूना कर  बाबुल का आँगन चल देती हैं,हो  मंजिल जहाँ ।

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Saturday, March 29, 2014

चाहत- 2

थक गए है तेरे दिए दर्द से ऐ मेरे सनम ,

                                       कभी तो शुक्रिया भी अदा कर दिया करो ऐ सनम ,

सहते-सहते दर्द अब बनते जा रहे हैं नासूर  सनम , 

                                    कभी तो मोह्हबत भी कर लिया करो सनम ॥ 

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आज तन्हाइयाँ फिर जाने क्यूँ अच्छी लगने लगी हैं,
                                                             तेरे पास न होने का अहसास अच्छा लगने लगा है ,
जाओ कहीं भी सनम न लाएंगे तेरी याद को दिल में ,
                                                             तुझसे दूर रहना आज अच्छा लगने लगा है ॥ 

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तेरे हर तानों को सहा है हमने दिल के हाथों मजबूर होकर,
                                                          तुझे इतना चाहा हमने दीवानों की तरह ,
जाने कब समझोगे  दिल की आवाज़ को तुम,
                                                       मैं तो हर वक्त तुझे फिर भी चाहूंगी मस्तानों कि तरह ॥ 

Wednesday, March 26, 2014

dard

बात ऐसी कह गए सोचा भी न कि हम पर गुजरेगी क्या ,
                                                    दर्द दिल में हुआ बिना आवाज था उनको पता क्या ,
सहें भी कितना हम ये उनसे पूछना तो चाहते है भला,
                                                    सुनने वाला न कोई यहाँ हाले दिल करें जो बयां ॥
उनकी बातों ने आज दिल के टुकड़े कर दिए  हैं हजार,
                                                   ढूंढेंगे भी तो भी न मिलेगा एक यहाँ और एक वहाँ क्या ,
चुभन को महसूस कर लिया कह न सकेंगे किसीसे ,
                                                    ऐसा तनहा उनकी बातों ने आज  हमको कर दिया ॥ 

नासूर सा दर्द दिल को दे दिया सोच भी नहीं ,

                                                   हम तो आपके ही थे हमको फिर ऐसा दर्द क्यूँ अपने दिया ॥ 

Tuesday, March 25, 2014

चुनाव

लो फिर एक बार हो गया आगाज चुनावों का,
                                     और उतर पड़े मैदान में नेता उम्मीद और आशा के साथ ,
कोई मांग रहा है कमल का साथ और,
                                   कोई मांग रहा है आपसे उठाकर अपने हाथ 'हाथ'का साथ ।
मतदाता हमेशा ही खड़ा रह जाता है ठगा सा,
                                  फिर भी दे देता है हमेशा किसी न किसी को अपना साथ ,
गलियों में ,सड़कों पर उतर कर
                                 एक दूसरे के ऊपर उछालते कीचड़ बताते अपने दामन  को साफ़ ।
गरीबों की दुनिया में तो जैसे आ जाती है,
                                इन दिनों बहार और बच्चे भी मानाने लगते हैं जैसे त्यौहार,
जिन्होंने न देखी थीं गन्दी गलियों को ,
                               वो  उन तंग गलियों नज़र आ रहे घूमते अपने बॉडीगार्ड के साथ ।
संहलना उमीदवारों अब हो गया हर कोई,
                               चतुर और समझदार,मांगना सम्हल  कर मतदाता का साथ ,
पर मैं तो इस बार हूँ बहुत ही ज्यादा खुश
                            ,क्यूंकि मैं तो 'नोटा' पर रखूंगी अपने अतिसुन्दर कोमल हाथ ॥


Tuesday, March 18, 2014

मौसम

होली के रंगों ने अभी तन का साथ छोड़ा भी न है ,
                                                              होलिका की अग्नि ने अभी ताप छोड़ा भी न है ।
लो सूरज ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है  ,
                                                              आसमान में अचानक धूप चिलचिलाने सी लगी है ।
तन से कपड़ों का बोझ  अब उतरने लग गया है ,
                                                               घर की छतों पर लोगों का टहलना शुरू हो गया है ।
,खुशनुमा बसंती  मौसम अब चला गया है ,
                                                               
                                                            तपन से भरा अब गर्मी का मौसम आ गया है ॥     


 

Monday, March 10, 2014

hema's kavya boond: होली आयी रे //

hema's kavya boond: होली आयी रे //: भर पिचकारी मार रंगों की बहार ,                                             मना लो आज होली आयी रे । कहीं उड़े गुलाल ,कही  रंग लाल-लाल ,  ...

होली आयी रे //

भर पिचकारी मार रंगों की बहार ,

                                            मना लो आज होली आयी रे ।
कहीं उड़े गुलाल ,कही  रंग लाल-लाल , 

                                              मना लो आज होली आयी रे ।
गुझिया पापड़ चिप्स से सजी है थाली, 

                                              मना लो आज होली आयी रे ।
रंगों की बौछार में मिट जाये सब रंज, 

                                                मना लो आज होली आयी रे ।
गले मिलें ऐसे  जैसे हो जन्मों का साथ, 

                                               मना लोआज  होली आयी रे ।
 सब ओर  ढोल मंजीरे का होये शोर,

                                                मना लो आज होली आयी रे ।
खेले कोई अपने पिया संग कोई सखा संग, 

                                               मना लो आज होली आयी रे ।
कोई खेलों गुबारों में भरकर रंग हरा -लाल,

                                                मना लो आज होली आयी रे । 

थोड़ा नाचो, थोड़ा कूदो और खाओ दोस्तों संग ,
                                                   मना लो आज होली आयी रे । 

आप सभी को शुभकामनाएं मेरी हो स्वीकार ,
                                                    मना लो आज होली आयी रे ॥ 


Friday, March 7, 2014

नारी दिवस

मनाते  हैं महिला दिवस ? कैसा है ये परिहास है ,
                                               जहाँ स्त्री आज भी बस है सामान की तरह ,
रोज एक खबर तो बलात्कार की मिल ही जाती है ,
                                              फिर भी मानते हैं महिला दिवस सर उठाकर ।
जहाँ विज्ञापनों में दिखाते बदन महिलाओं के,
                                              और बेचते हैं सामान पुरुषों के इस्तेमाल के लिए ,
है कैसी विडंबना!  स्त्री के आंचल में मुंह छिपा,
                                                जो पुरुष सीखता, अपने पैरों पर चलना   है ।

उसी के आंचल को बेदाग़ करके भी नहीं थकता,
                                               हर चाौराहे पे आँखों से उसके आंचल को चीरता । 



Wednesday, March 5, 2014

सोचती हूँ

दिल से निकले हर लफ्ज़ को शब्दों में पिरो कर ,
                                              पन्नों पर बिखरा देने को बेचैन रहती हूँ।,
ऐसे ही खाव्बों में  किसी रोज कोई आकर ,
                                            मेरे अल्फाजों को कुछ तो सिला दे ये सोचती हूँ ॥
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वक्त के साथ सब ठीक हो ही जायेगा इसी सोच में जिए जाते हैं ,
                                            कभी तो आएगा कोई हमें  भी समझने ये हम  सोचते हैं  ।
आँखें राहों में पलके बिछाएं नज़र वो ढूंढती हैं।
                                            कोई तो हमसफ़र बनने के लिए आएगा ये हम सोचते हैं ॥ 

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 कदम लड़खड़ा न जाएं कहीं ये सोचती हूँ ,
                                             सम्हाल ही लेंगे वो ये सोचती हूँ ,

 चले जायेंगे पता था ,दामन  किसी का थाम वो ,
                                           न जाने क्यूँ उम्मीद का दामन मैं फिर भी नहीं छोड़ती हूँ ॥ 


Tuesday, March 4, 2014

चाहत /

मोहब्ब्त में तेरी इस क़दर होश गँवा बैठे हैं हम ऐ मेरे सनम  ,
                                                  इन्तजार अब और नहीं होता आ ही जाओ ऐ मेरे सनम  ||
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जिंदगी उतनी भी हसीन है नहीं ,जितनी आप समझते थे ,
                                               नहीं   तो मंजिलें आसान न हो जाती सनम ॥
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तेरी खातिर अब हम  अंगारों पर चले जाना चाहते हैं ,
                                          एक बार तो निगाहें मिला लेते ऐ मेरे सनम ॥ 


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जो   निगाहें   हमें किसी भी काबिल न समझती है  ,
                                          क्यूँ हम उन्हीं निगाहों में बसने की ख्वाहिश  रखते हैं  ॥ 



Monday, March 3, 2014

चाहत

अश्क उनकी आँखों में थे,निशां हमारे गालों पे,  

                                  दर्द उनके सीने में था,खलिश हमारे सीने में थी  । 

हर अज़ीज़ से पूछते रहे,ये थी कैसे पहेली, 

                                हर जुबां पर यही सच था ,हाय ये ही तो मोहब्ब्त थी ॥ 

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तुझे चाहते हैं बेइंतहाई की हद तक,

                                    पर तेरी जिल्लतों से थक गए हैं हम । 

आरजुओं का तो पता नहीं सनम पर ,

                                   तेरी रुसवाइयों से थक गए हैं हम ॥ 

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सागर सी आँखों में देखते रह गए हम,

                                अपने ही सीने में अपना दिल ढूंढते रह गए हम ॥  

Monday, February 24, 2014

मौसम

धूप फिर  छिटकने  सी लगी है ,
                                   बादलों की घटाएं भी अब कम सी दिखती हैं ,
बंद कमरों की खिड़कियां खुलने  लगी हैं
                                  ,बिस्तरों से रजाईयां सरकने लगी हैं ।
बदन भी अब हल्का सा लगने लगा है ,
                                 बोझ कपड़ों का अब कम होने लगा है ,
पक्षियों का चहचहाना भी अब बढ़ गया है,
                               क़दमों के चाल भी अब बढ़ गयी है ।
ठण्ड में जो दुबके हुए थे ,
                            अब बुजुर्ग भी वो बाहर निकल टहलने लगें हैं ।

बैठते थे धूप सेकते खाते थे मूंगफली जो ,

                            बाहर वो बैठने से कतराने लगे है
आगाज हो रहा है गर्मी के मौसन के आने का,
                            लोगों के चेहरे मुस्कुराने से लगे हैं ॥

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मौसम बदल रहा है ध्यान अपना सभी को रखना होगा ,
                बदलते मौसम में मौसम का मिज़ाज़ भी देखना होगा ।
कहीं बादलों का साथ छूट रहा है तो कहीं सूरज आसमान पर चढ़ रहा होगा ,
                हो न जाये तबियत नासाज़ इस बात का भी तो ख्याल रखना होगा । 


Friday, February 21, 2014

दोस्ती

बमुश्किल ही मिलते हैं दोस्त अच्छे इस दुनिया में ,

                             तेरे जैसा एक दोस्त मिल ही जाये गर इस दुनिया में ।
तेरी हर हिदायत को गांठ बनाकर बांध लेंगे आंचल में ,

                             साथ न छोड़ेंगे जब तक हम  रहेंगे इस दुनिया में ॥ 

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तेरे प्यार की चाहत में बेकरार हो रहे हैं ,
                                             बंद दरवाजों को खोलिए तेरे दीदार को खड़े हैं।
तेरे नूरानी  चेहरे की मुस्कुराहटों पे मर मिटे हैं ,
                                              क़दमों में फूल बिछाने को बेताब बड़े हैं ।।

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Thursday, February 20, 2014

दर्द

पतझड़ों के मौसम में पत्तों का दर्द कोई क्या जाने,
                                                 जिस दरख्त को समझा था अपना साथ छोड़ा उसी ने है ।
फूलों का क्या है उड़ कर दरख्त से  गर गिर भी जाएँ रास्तों में
                                                , मंदिरों में चढ़ कर मंजिलें तो पा ही लेते हैं ।
जमीं दोज होकर वो पत्ते पैरो तले कुचलते-रोंदते,
                                              किसी नाले में बहते हुए पत्तों का दर्द  भला कोई क्या जाने । 


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चाहा था तुम्हें फिर भी अपना न सके ,
                                          तुमसे अलग मंजिल अपनी बना न सके ।
ऐसी थी क्या मजबूरी तेरी यादों के भुला न सके ,
                                         आँखों में अश्क तेरी ही  यादों के थे ,
होंठों पे थरथराहट तेरे नाम की,
                                          तुझसे अलग होकर हाय हम  जी न सके । 

Thursday, February 13, 2014

अच्छा लगने लगा है

नीला आसमान आज फिर से अच्छा लगने लगा है ,
                                   ऊंचाइयां छूटे परिंदे देखना फिर अच्छा लगने लगा है।
बादलों  को चीरती  उषा की किरणें देखना अच्छा लगने लगा  है ,
                                   तपती  दुपहरिया में सर चढ़ते सूरज को देखना अच्छा लगने लगा है ।
टहनियों पर बैठे चहचहाते  पक्षिओं को देखना अच्छा लगने लगा  है ,
                                   सांझ ढले चन्द्रमा की रौशनी में नहायी चांदनी को देखना अच्छा लगने लगा है ,
न कोई गम न उदासी बस यूँ ही हर किसी को निहारना अच्छा लगने लगा है ॥
                                     

Tuesday, February 11, 2014

बचपन

बहुत याद आते हैं गुजारे हुए बचपन के दिन,
                                       गली के दोस्तों संग खेलते बचपन के दिन ,
गर्मियों की छुटियाँ और नाना-नानी के घर ,
                                        आम खाते हुए बिताये वो बचपन के दिन ।
न थी दिल मे कोई चाहत न हसरत ,
                                         न था कोई गुमान, खाते-खेलते बिताये बचपन के दिन ,
गिल्ली-डंडे-गिट्टक संग  खेलते,डांट  खाते -
                                         खिलखिलाते हुए बिताये हुए वो बचपन के दिन ।
हर गली लगती एक मोहल्ले सी,
                                          घूमते -टहलते हर किसी को अपना चाचा बुलाते हुए वो दिन,
मोहल्ले बँट  गए कालोनियों में ,पार्कों में मम्मी -दादी
                                        -नानी  संग बिताता हर कोई अपना बचपन ।
नज़र अब नहीं कोई आता झूलों पर पेंगे मारता हुआ  बचपन ,
                                         बारिशों में भीगता नाव डुबाता, बचपन,
दब गया है किताबों के बोझ तले हर किसी का बचपन,
                                           आगे बढ़ने की होड़ में खोता हुआ बचपन ।
हम खुद अपने बच्चों को बना रहे है बेगाने ,
                                           रिश्तों से दूर हो रहा है आज हर किसी का बचपन ,
नज़र अब आता है ,बंद कमरों में टी वी ,कम्प्यूटर ,
                                            मोबाईल बीच बिताता हुआ हर किसी का बचपन ॥ 


Monday, February 10, 2014

बेटी की विदा

आज विदा हो रही है फिर किसी माँ की प्यारी बेटी,

                                          आँचल में मुंह छिपा रो रही बेटी । 

आंसुओं संग थपथपा कर सीख दे रही माँ ,

                                         ये घर बेगाना  हुआ तेरे लिए आज से मेरी बेटी ।
हुए हैं दो परिवार आज से एक मगर, 

                                         नहीं हुए हैं दो घर अभी एक,ये जान लेना मेरी बेटी ,
दिलों के ग़मों को आंसूंओं में बहा देना ,

                                         पर नहीं लाना दिल की उदासी चेहरे पर मेरी बेटी ।
बदल जायेगी  तेरे हर रिश्ते की तस्वीर ,

                                      किसी की बहु  किसी की हुई आज से भाभी ,
हुए घर मे अगर नन्हे-मुन्ने ,

                                   तो अभी से बन जायेगी तो उनकी भी चाची  और मामी ।
यहाँ की यहीं पर अब छोड़ जाना ,

                                    वहाँ कि ख़ुशी और गम को तुम  अपना लेना ,मेरी बेटी ,
दो घरों की इज्जत आज से तेरे ही हांथों में सौपती हूँ 

                                     ये इज्ज्त यूँ ही  बनाये रखना मेरी प्यारी बेटी । 

Saturday, February 8, 2014

मौसम

लो आज अचानक फिर मौसम ने अंगड़ाई ले ली है ,
जाते -जाते अपने अस्तित्व  का अहसास ठण्ड करा रही है ।
सूरज कहीं दूर बादलों में जा कर छिप गया है ,
हवाएं लहराती सी तन को झुरझुरी दिला रहीं हैं ।
मोटी रजाइयें लोगों के बिस्तरों में फिर से जगह बना रही हैं ,
सड़कों किनारे सोते -जागते बेबस इंसानों को कंपकपा  रही है  ।
जाते -जाते अपने अस्तित्व के होने का अहसास ठण्ड करा रही  है ,
देखो तो जरा  फिर एक बार तन पर कपड़ों का बोझ लद  गया है ।
अदरक वाली  चाय फिर एक बार  फिर से प्यालों में छन रही है ,
बसंत के बाद भी ठण्ड में ठिठुरने को मजबूर ठण्ड  कर रही है ॥ 




Friday, February 7, 2014

khavaab

है हुस्न तेरा महका-महका ,है इश्क मेरा गहराया हुआ । 

                             तेरी बाहों के साये में सनम ,क्यों दिल है मेरा घबराया हुआ ॥ 

तेरे दिल की मैं क्या जानूं ,आँखों से यूँ न इशारा करो । 

                               सांसें हैं मेरी लहराई हुई,आँखों में तुम्हें ही बसाया हुआ ॥ 

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एक हसीन ख्वाब हो तुम , चाँद की चांदनी हो तुम,

                              टिमटिमाते तारों से आभा तेरी ,फूल की महक हो तुम।

आकर तेरे आगोश में खुद चहक जाते है ,

                                तुम्हारे नरम अहसास से लगता है यूँ ,

 खिड़कियों से छनकती नरम धूप हो तुम ॥

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हो एक आशियाँ ,खूबसूरत हो फूलों का नज़ारा ,जो मैं सजाऊँ तेरी तस्वीर ,आत्मा अपनी ,तो बसा लूँ

झूमरों की खनखनाहट से तेरी आवाज़ में मैं कहीं खो जाऊं ,चमन में खिले फूल तेरे चरणों में अर्पण कर दूँ ॥

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साथ जीते थे हम अरमानों के ,

                                   ख्वाब दिल में रोज बसाते  थे हम । 

रोज एक हो गया ये क्या सनम ,

                                   टूटते तारों की तरह टूट गए हम ,

तुम तो चाहत थे किसी और के सनम ,

                                  क्यों तेरी आगोश में आ गए हम ।। 

Tuesday, February 4, 2014

शिकवा

१. आई है क्यों बूँद पसीने  की तेरे पेशाने पे,क्या गम है जो छिपाये हो दिल के अंधेरों में ।
क्यों नहीं इजहारे गम कर देते हो सनम,हम आपके ही तो हैं सनम नही कोई बेगाने ॥ 

२.फैसले जिंदगी के जो आप खुद ही कर लेते ,यूँ ज़माने भर में आज  न हमको रुसवा करते ।
तड़पकर रह जाते हैं आपके बेरुखे अंदाज से,अश्क हैं कि आँखों से थमने का नाम ही नहीं लेते ॥ 

३. कैसे भूल जाऊँ मैं उन लम्हात को जब कुरेदा था तुमने मेरे जज्बात को।
तुम्हें तो जख्म देने की आदत सी है,हमें हैं जो सी भी नहीं पाते इन जख्मों को ॥ 

४. उजाले हमें क्यूँ रास नहीं आते ,
                                         अंधेरों में हम हैं  यूँ ही मुस्कुराते ।
होती हूँ जब आईने के सामने ,
                                         हो जाते हैं उदास दिल के कोने ।
नहीं शिकवा कोई गिला भी उनसे ,
                                        बस शिकायत है अपनी किस्मत से ॥ 

Thursday, January 30, 2014

चाह

जो न किया कभी वो आज ज़रा कर लेने दो,

                      तेरे अल्फाजों को मेरे लबों पे आ जाने दो।
वक्त जो थम ही जायेगा हालात जरा बदल जाने दो,

                      तुम आज अपनी आगोश में  जरा मुझे आ जाने दो॥ 

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आँखों के बरसते नीर को आँसू न समझना,
                                दिल में छिपे दर्द को यूँ रुसवा न करना।
अब और क्या कहें तुमसे ऐ सनम ,
                               हम  तड़पते हैं हर पल तेरी याद में बेवफा न समझना ॥ 

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तेरे होने के अहसास को हम कुछ ऐसे जिए हैं,

                                        जिंदगी में आये हर गम को जाम संग पिए हैं। 

तुम बाँहों में लो या न लो हम तो सीने से यूँ  ही लगे जाते हैं ,
                                                 तेरी आँखों के सहारे हर ख्वाब अपना जिए जाते हैं ॥ 

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Tuesday, January 28, 2014

pal

१. पहलू में अभी थे,जाने कहाँ चले गए,सारे जहाँ की खुशियां हमको थमा गये।

ढूंढते रह गए हम नज़र कहीं नहीं आये,आहट  भी नही हूँ वो सामने नज़र आये ॥

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२. थाम दिल की धड़कन जुदा  हो रहे थे,चिलमन की ओट से वो मुस्कुरा रहे थे।

मुस्कुराहट में दर्द-ऐ-दिल छुपा रहे थे,जाएँ कैसे हम उनके अश्क रास्ता रोक रहे थे।।

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३.इस शहर में आये हुए चार दिन न हुए थे ,तुम्हें मिलकर अभी चार पल न हुए थे ॥ 

नैन तेरे दीदार को हर पल क्यों तरसते थे,लब भी चार लफ्ज कहने को तरसते थे ॥ 

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४. करती हूँ तेरा इंतज़ार बड़ी बेकरारी से,यकीन न हो तो पूछ लो बिस्तर की सिलवटों से । 

     हर पल  तड़प कर रह जाते हैं तुम्हारी बातों से ,अश्क थमते ही  नहीं हैं हमारी आँखों से ॥ 

Saturday, January 25, 2014

चाहत

१. दुनिया की कही कुछ यूँ दिल से लगाई ,नज़र हमीं से फेर कर चल दिए । 

                                                           बात हमारे दिल की सुनते इससे पहले क्यूँ चल दिए ॥ 

क्यूँ हमसे जुदा होकर  चल दिए,बयां करें क्या हाले दिल अपना । 

                                                       आये थे बहार बनकर ,हाय!  क्यूँ पतझड़ बनकर चल दिए ॥ 

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२. मेरी मोहब्ब्त का जनाजा न निकल जाये डरती हूँ, 

                                                                   डर ही है जो हर पल चुप रह जाती हूँ ॥ 

कुछ कहने से पहले लव थरथरा जाते हैं , 

                                                                   हर पल उनके पहलू में रहूँ ,चाहत में जिए जाती हूँ ॥ 

एक बार जो दिल की बात कह दूँ ,

                                      दिल को मेरे सकून  आ जाये ,

                                                 उनके दीदार हों तमन्ना हर पल यही रखती हूँ ॥ 

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३. तेरी आँखों से मिला जो पैगाम प्यार का,

                                                                  हमने समझा जाम और पीते चले गए ॥ 

तेरे होंठों से सुने जो प्यार के दो बोल ,,    

                                                               फूल समझा और चुनते चले गए ॥ 

आगोश में तुम्हारी आ जाएं  इसी चाहत में , 

                                                                 हम  ज़माने में रुसवा होते चले गए ॥