Friday, July 25, 2014

द्रौपदी का दर्द

महाभारत का कलंक उस द्रोपदी के सर सबने मढ़ा था।
उस अग्नि पुत्री द्रोपदी को बांटा गया पांच पांडवों में था,
उस पल द्रोपदी के मन का दर्द जाना किसी ने भी न था ,
जंगलों में भटकती पांडवों संग द्रोपदी के दर्द का जाना किसी ने न था 
मामा शकुनि की कुटिल चालों का कुछ गुमान धर्मराज को न था 
क्या कुसूर था उस  द्रोपदी का था जो हारा उसे जुएं में गया था 
केशों से घसीटी गयी निर्वस्त्र करने को  बेताब दुशाशन बड़ा था 
क्या कसूर द्रोपदी का था ,भरी सभा  में वेश्या उसे पुकारा गया था ,
खींचा गया केशों से अपमानित किया गया  द्रोपदी को  था ,
माना ,दृष्टिहीन  थे राजा ध्रितराष्ट्र ,
पर क्या औरों की नजरों में ये कोई अपराध न था 
देखते सभी रहे थे उस घडी द्रोपदी के दर्द को महसूस किसी ने न किया था ,
पितामह भी तो नज़रें झुकाये  मूक दर्शक बने भरी सभी में बैठे रहे थे 
माता गंधारी ने तो पहले ही आँखों पर पट्टी बाँध ली थी 
द्रोपदी के दर्द को न जाना किसी ने भी न था ,
थक हार अपनी लाज बचाने को 
श्री नंदन को पुकारा द्रोपदी ने थे ,
आकर श्री कृष्ण ने अपना कर्ज उतार दिया था ,
एक ऊँगली पर बाँधी हुई 
एक चीट का कर्ज यूँ उतारा था,
द्रौपदी के मन का दर्द जाना किसी ने भी न था ॥ 

Friday, July 18, 2014

यादें

कलेजे के टुकड़े को विदा कर के जब से आई हूँ ,

                                   दिल से जैसे कुछ निकल सा गया है ,
जानती थी एक न एक दिन ये तो होना ही था,

                                   मगर फिर भी अजब बेचैनी सी दिल में है ,
अब से ही दिन गिनने लग गयी हूँ, 

                                      उसके आने का इन्तजार करने  लग गयी हूँ ,
हर बात उसकी याद दिला कर,

                                      आँखों को नम  कर जा रही है बार-बार यूँ ,
न जाने किस तरह से बिता पाऊँगी,

                                     बिन उसके, अपने दिन और रात यूँ ,
मजबूत कर रही हूँ दिल को अब,

                                     कैसे भी उसके बिना बिताना ही होगा दिन यूँ,
बार-बार सोच रही हूँ की आँखों को,

                                 नम न होने दूँगी मैं,फिर भी रोक न पाती हूँ ,
उसकी छोटी-छोटी बातों को,

                                 याद करने के सिवा कुछ बाकि ही नहीं है ,
दिल को मजबूत करने की,

                                        कोशिश भी नाकाम हो रही है यूँ ,
उसकी यादों के सहारे दिन बिताने की,

                                  अब कोशिश दिन-ब -दिन करूंगी ॥ 

Tuesday, July 15, 2014

पिता का प्यार

 एक पिता पुत्र के प्रेम की अजब दास्ताँ है,
ऊँगली पकड़ चलना सिखाता जिसे पिता है ,
बचपन में जो पुत्र  आँखों का तारा होता है ,
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही 
पिता के दिल से उतरने लगता वो पुत्र है 
कल तक जो अपना था वो अचानक पराया हुआ जाता है ,
हर पल तिरस्कृत पिता से हुआ जाता है 
कभी आदतों के तो  कभी चाहतों के पैमाने पर खरा नहीं उतरता वो पुत्र ,
कभी क़दमों के बहकने के तानों से घिरा  जाता है पुत्र 
पिता की नज़रों से दूर जाता हुआ वो पुत्र 
 अपनी ही आँखों में गिरा जाता है वो पुत्र ,
 माँ की आँखों का तारा सदा ही होता है पुत्र ,
हर तूफ़ान से बचा लाने का साहस 
सिर्फ और सिर्फ माँ में ही होता है ,
अचानक जब पार लगती है नैया पुत्र की 
पिता का प्यार एक बार फिर उमड़ आता है ,
सर पर प्यार का अब पिता  हाथ फिराता है ,
लोगों से अब कहते नहीं थकता कि पुत्र मेरा है ,
रोशन कर दिया मेरे कुल को आज जिसने ,
क्या हर घर की ऐसी ही दास्ताँ होती है ,क्या पुत्र की ये ही कहानी होती है ,
कैसी विडंबना इस धरा पर है ,पिता पुत्र के प्रेम की ये अजब दास्ताँ है 


Sunday, July 13, 2014

mausam

हर निगाह में हज़ार सवाल थे ,आसमान में एक भी बादल का टुकड़ा  भी नहीं था ,
एक बूँद की आस में पक्षी भी गगन मे ताक रहे थे ,एक बूँद की आस में हर कोई था ,
चटकती ,चिलचिलाती धूप का सामना कर सके ऐसा साहस अब किसी में भी नहीं था ,
सावन के महीने ने दे दी थी दस्तक फिर भी बादलों का जमावड़ा कहीं नज़र आता नहीं था ,
पेड़ पौधों की रौनकें खो सी गयी हैं ,धरती भी हसरत भरी निगाह से गगन को देख रही है ,
एक सवाल धरा की आँखों मैं भी है ,कब आओगी बरखा रानी और कितना इंतज़ार करना होगा ,
आज अचानक काले घने बादलों ने आकर घेर ऐसा लिया आसमान को ,
इंद्र देवता ने यूँ भिगोया कि  धरा संग हर ओर  ख़ुशी की लहर सी दौड़ गयी है , 
ऐसा लगता है अब सावन आ गया है,झूले न सही एक प्याला चाय संग मौसम का लुत्फ़ उठा ही लिया जाये ॥