हर कोई अपना सा है, पर लगता बेगाना सा है,
यहाँ भीड़ में हैं सब खड़े, पर अकेले जहाँ में लगते,
हाँ, इस बदलते वक़्त में हर कोई रिस्ते तो निभा रहा है,
पर चुपचाप अपनी उँगलियों को उलझा सा रहा है,
जहाँ भर को अपने होने का अहसास दिला रहा है,
पास होकर भी अपनों से दूर हो रहे हैं सब यहाँ,
कभी सोचती हूँ तकनीक के युग में सब अच्छा सा है,
पर सब यहाँ पराया होने का अहसास दिला रहा है,
कोई अब घरों के छज्जो पर नज़र नहीं आता है,
पार्कों की चहल- पहल न जाने कहाँ गुम सी हो गयी है,
कोई घर के आंगन में अब चहचहाता नहीं है,
वो शाम ढले चौबारों में अब रौनकें कहाँ ढूंढें,
वो सर्द सुबह में धुप में सेंकते किसे ढूंढें,
अब तो दालान भी सूने हो गए हैं,
बंद कमरों में एक दुसरे के पास होकर भी दूर हम हो गए है,
दावतों में भी अब चुपचाप निवाले सरकाए जाते हैं,
दिल अज़ीज़ भी अब पराये से लगने लगे हैं,
कभी सर उठा कर चलने वाले सर झुका कर चलने लगे हैं,
व्हाट्स अप और फेसबुक की दुनिया में खोये रहे,
इनसे ही टूटते हुए रिश्तों को हमने देखा हैं,
रिश्तों के धागों में गांठ लगते हुए इनसे ही देखा है,
एक दुसरे का विशवास बिखरते हुए हमने देखा है,
नहीं कहती कि स्मार्ट फ़ोन बंद हो जाएं,
'पर ये भी नहीं चाहती, इसमें ही रिश्ते सिमट जाएं,
नहीं चाहती ये तकनिकी दुनिया खत्म हो जाये,
पर नहीं चाहती, इनसे ही रिश्ते खत्म हों जाएं॥
#AloneInWorldOfTechnology